बैंकों को होम, आटो और छोटे उद्योगों के लिए फ्लोटिंग रेट वाले लोन की ब्याज दरों को 1 अक्टूबर से आरबीआई के रेपो रेट जैसे बाहरी बेंचमार्क से जोड़ना अनिवार्य होगा। आरबीआई ने बुधवार को इसका सर्कुलर जारी किया इससे रिटेल ग्राहकों और उद्योगों को आरबीआई द्वारा ब्याज दरों में कटौती का फायदा तुरंत मिलना सुनिश्चित होगा। अर्थव्यवस्था में मंदी की एक वजह ग्राहकों को सस्ते कर्ज का फायदा नहीं मिलना भी है।
बैंकों का मौजूदा फ्रेमवर्क संतोषजनक नहीं: आरबीआई: आरबीआई ने कहा है कि बैंकों का मौजूदा मार्जिनल कॉस्ट आॅफ फंड्स बेस्ड लेंडिंग रेट (एमसीएलआर) फ्रेमवर्क संतोषजनक नहीं है। आरबीआई इस साल रेपो रेट में 110 बेसिस प्वाइंट यानी 1.10% कटौती कर चुका है। लेकिन, बैंकों ने ग्राहकों को सिर्फ 40 बेसिस प्वाइंट यानी 0.40% का फायदा दिया है।
3 महीने में कम से कम 1 बार ब्याज दरें रीसेट करनी होंगी: जिन बाहरी बेंचमार्क दरों से बैंकों को ब्याज दरें जोड़नी होंगी उनमें रेपो रेट, 3 महीने या 6 महीने की ट्रेजरी बिल यील्ड या फाइनेंशियल बेंचमार्क्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (एफबीआईएल) द्वारा निर्धारित कोई अन्य बेंचमार्क दर हो सकती है। बाहरी बेंचमार्क से लिंक करने के बाद बैंकों को ब्याज दरें 3 महीने में कम से कम 1 बार रीसेट करनी होंगी।
ट्रेजरी बिल क्या होते हैं?: सरकार कर्ज लेने के लिए ट्रेजरी बिल जारी करती है। आरबीआई अलग-अलग अवधि के ट्रेजरी बिल की समय-समय पर नीलामी करती है। यह खरीदारों को फेस वैल्यू से कम कीमत पर जारी किए जाते हैं लेकिन, मैच्योरिटी पर पूरी वैल्यू मिलती है। बाजार में नकदी की कमी होती है तो ट्रेजरी बिल पर ज्यादा रिटर्न मिलने की उम्मीद रहती है। कोई भी इंडिविजुअल, फर्म, ट्रस्ट, संस्थान या बैंक ट्रेजरी बिल खरीद सकते हैं।